नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

मूर्ख

कोई आपको “मूर्ख” कहता है। और फिर आप सोचने लगते हैं, “उसे मुझे मूर्ख कहने का क्या हक़ है? वो मुझे मूर्ख कैसे कह सकता है? कितना बदतमीज़ है! मैं इसका जवाब दूँगा।” और तभी आपको एहसास होता है कि आपने उसे आपको चार बार और मूर्ख कहने दिया।

हर बार जब आप उस बात को याद करते हैं, आप असल में उसे दोबारा—और दोबारा—आपको मूर्ख कहने की इजाज़त दे रहे होते हैं। यहीं असली समस्या है।

अगर कोई आपको “मूर्ख” कहे और आप उसी पल उसे जाने दें, तो बात ख़त्म हो जाती है। आप पर असर नहीं पड़ता। यही समाधान है।

अपनी आंतरिक ख़ुशी का कंट्रोल आप दूसरों को क्यों देने दें?


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