नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

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अन्य ध्यान

अवगुण देखना

“अवगुण (खामियाँ, दुष्परिणाम) देखना क्या है?

कोई भिक्षु जंगल में, पेड़ के तले, या ख़ालीगृह में जाता है, और चिंतन करता है —

‘बड़ी पीड़ाएँ है इस शरीर की! बहुत अवगुण है!

इस शरीर में विविध बीमारियां उपजती है, जैसे —

  • आँख का रोग, कान का रोग, नाक का रोग, जीभ का रोग, काया का रोग,
  • सिर का रोग, मुँह का रोग, दाँत का रोग, होंठ का रोग,
  • खाँसी, दमा, जुक़ाम, बुखार,
  • बुढ़ापा, पेट दर्द, मूर्च्छित होना, दस्त, इन्फ्लूएंजा,
  • हैजा, कोढ़, फोड़ा, दाद, टीबी, मिर्गी,
  • त्वचा का रोग, खाज, पपड़ी निकलना, चकते पड़ना, खुजली,
  • पीलिया, मधुमेह, बवासीर, भगंदर, अल्सर,
  • पित्त कुपित होना, कफ कुपित होना, वात कुपित होना, तीनों दोष असंतुलित होना,
  • मौसम बदलाव से बीमारियाँ, शरीर की सही देखभाल न करने से बीमारियाँ,
  • पिटाई से ग्रसित, कर्म-विपाक की बीमारियाँ,
  • ठंडी, गर्मी, भूख, प्यास, मल व मूत्र त्याग।

— इस तरह, साधक अपने शरीर के अवगुणों का चिंतन करते हुए विहार करता है। इसे कहते है अवगुण देखना।”

— अंगुत्तरनिकाय १०:६०