नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

शुरुवात कैसे करें?

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ध्यान साधना

भावना का अर्थ है अपने मन के भीतर हितकारी भावनाओं को बढ़ावा देना। ये भावनाएँ जैसे सद्भावना, करुणा, शांति, एकाग्रता, और अंतर्ज्ञान हो सकती हैं। ये हमारी पुरानी अकुशल प्रवृत्तियों को संतुलित या समाप्त करती हैं, और हमारी शांति, स्थिरता, और समझदारी बनाए रखती हैं।

हमें इन भावनाओं को केवल बुद्धि के स्तर तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उन्हें गहराई से आत्मसात करना चाहिए — विशेषकर उस अवचेतन स्तर पर, जहाँ दुःखों की उत्पत्ति होती है। ध्यान साधना से हम अंतर्ज्ञान प्राप्त करते हैं, जो हमारे अवचेतन मन में ऐसा तंत्र विकसित करता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हमारा होश बना रहे।

जब हम इन कुशल भावनाओं को विकसित करने का संकल्प लेते हैं और लगातार प्रयास करते हैं, तब निश्चित रूप से हमें सफलता मिलती है।

मेत्ता

भगवान बुद्ध ने सद्भावना (मेत्ता) के मार्ग को कई सूत्रों में विस्तार से बताया है। हमने प्रयास किया है कि इन शिक्षाओं को संक्षेप में प्रस्तुत करें, ताकि आप सहजता से उनका अनुसरण कर सकें।

सद्भावना विकसित करने से पहले एक महत्वपूर्ण मानसिक तैयारी आवश्यक है, जो इस प्रकार है —

अपने आप को शान्त, सीधा और स्पष्टवादी बनाएँ। अहंकार छोड़ कर विनम्र, धैर्यवान, सौम्य और मृदु बने। अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखते हुए संतोषी, सहज और अल्पेच्छुक जीवनशैली अपनाएं। परिवार और अन्य संबंधों में आसक्ति को कम करें। ऐसा कोई कार्य न करें जिसे विवेकशील और समझदार लोग अनुचित मानें।

फिर एकांत में जाकर, आराम से पालथी मारकर, काया सीधी रखते हुए बैठ जाएँ। शांति और स्थिरता पाकर इस प्रकार से सद्भावना का अभ्यास प्रारंभ करें:

• “मैं सभी के प्रति शत्रुता और बैरभाव का त्याग करता हूँ। मैं पूर्णतः निर्बैर हो जाऊँ।”

पहले इस वाक्य को मन में पूरी तल्लीनता और गहराई से दोहराएं, ताकि यह आपके विचारों और भावनाओं में पूर्ण रूप से व्याप्त हो जाए। फिर धीरे-धीरे इसे अपनी वास्तविकता में उतारने का प्रयास करें। यह केवल एक विचार या वाक्य तक सीमित न रहे, बल्कि आपके मन और हृदय में यह भावना सजीव और प्रबल बन जाए। आगे चलकर, यह आपके आचरण और दृष्टिकोण में स्पष्ट रूप से झलके, जिससे आपके जीवन में इस भाव का स्वाभाविक विस्तार हो।

• “मैं सभी के प्रति द्वेष और दुर्भावना का त्याग करता हूँ। मैं पूर्णतः निर्द्वेष हो जाऊँ।”

आप इसे अपने प्रियजनों से शुरू कर सकते हैं, जहाँ इस भावना को जागृत करना सहज हो। जैसे-जैसे यह भाव आपके भीतर मजबूत होता जाएगा, इसे धीरे-धीरे सभी लोगों, समुदायों और जीवों तक फैलाते जाएँ।

इसके बाद, इसी प्रकार निम्नलिखित भावों के लिए भी अभ्यास करें। हर भाव को गहराई से अनुभव करते हुए उसे अपनी वास्तविकता में उतारने का प्रयास करें, और उसी तरह धीरे-धीरे सभी लोगों, समुदायों और जीवों तक फैलाते जाएँ:

• “मैं सभी के प्रति घृणा और नाराज़गी का त्याग करता हूँ। मैं पूर्णतः घृणारहित और पीड़ारहित हो जाऊँ।”

• “मैं सभी को उनके द्वारा किए गए बुरे कर्मों के लिए क्षमा करता हूँ—चाहे वे शारीरिक हों, वाणी से हों या मन से। मैं सभी को क्षमा करता हूँ।”

• “मैं अपने बुरे कर्मों के लिए सभी से क्षमा चाहता हूँ—चाहे वे शारीरिक हों, वाणी से हों या मन से। मैं सभी से क्षमा चाहता हूँ।”

• “मेरे जीवन के कष्ट दूर हों। मैं सुखी होऊँ। मैं शांत और स्वस्थ रहूँ। मैं सुरक्षित रहूँ।”

• “सभी प्राणियों के कष्ट दूर हों। सभी सुखी हों। सभी शांत और स्वस्थ रहें। सभी सुरक्षित रहें।”

• “इस ब्रह्मांड के सभी जीव—चाहे वे दुर्बल हों या बलवान, लंबे हों या छोटे, दृश्य हों या अदृश्य, समीप हों या दूर, जन्मे हों या जन्म-प्रतीक्षारत—सभी के कष्ट दूर हों। सभी सुखी और सुरक्षित रहें।”

• “कोई भी प्राणी किसी के प्रति हिंसा न करे। न क्रोध हो, न घृणा, न लालच, न धोखाधड़ी, न हानि पहुंचाए। किसी के प्रति दुःख कामना न करे। सभी अपने दुःखों से मुक्ति पाएं और सद्गति प्राप्त करें।”

• “सभी प्राणी पुण्य करें, शांति प्राप्त करें, और उज्जवल मार्ग की ओर बढ़ें। सभी का कल्याण हो।”

जैसे एक माँ अपने इकलौते पुत्र के प्रति असीम प्रेम और सुरक्षा का भाव रखती है, उसी प्रकार सभी प्राणियों के प्रति असीम और निष्काम सद्भावना उत्पन्न करें। आप चाहें तो अन्य शुभ वाक्यों का भी प्रयोग कर सकते हैं।

जब आपकी सद्भावना गहरी और प्रबल हो जाए, और शरीर में ऊर्जा की तरह प्रवाहित होने लगे, तब उसे सभी दिशाओं में फैलाएं। जैसे कोई बलशाली व्यक्ति शंखनाद कर सभी दिशाओं में संदेश देता है, वैसे ही अपनी सद्भावना को पूर्व दिशा में फैलाएं—

• “पूर्व दिशा के सभी मानव और अमानवीय प्राणी सुखी हों, निर्बैर हों, स्वस्थ हों, सुरक्षित हों, और सभी बाधाएं समाप्त हों।”

• “दक्षिण दिशा के सभी सत्व… पश्चिम दिशा के सभी सत्व… उत्तर दिशा के सभी सत्व… ऊपरी दिशा के सभी सत्व… निचली दिशाओं के सभी सत्व — सुखी हों, सुरक्षित रहें, स्वस्थ हों और शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करें। दुनिया में मित्रता, प्रेम और सहयोग की भावना प्रबल हो। विश्व में शांति स्थापित हो।”

इसी प्रकार आप करुणा भाव, मुदिता भाव (अन्य की खुशी में आनंद) और उपेक्षा भाव (तटस्थता) भावों को भी सभी दिशाओं में फैला सकते हैं। इन चारों भावों का सम्यक रूप से अभ्यास करने से ब्रह्मविहार परिपूर्ण होता है, और असीम पुण्य का संचय होता है।

साँस की ध्यानसाधना के बारे में पढ़ें — आनापान भावना