भगवान बुद्ध, जिनका जन्म सिद्धत्थ या “सिद्धार्थ गोतम” के नाम से हुआ, हजारों साल पहले इस धरती पर आए थे। कहते हैं कि युगों-युगों तक इस संसार को “बुद्ध” का दर्शन नहीं होता। और जब कोई बोधिसत्व परमार्थ की खोज में “सम्यक-सम्बुद्ध” बनता है, वह युग देवताओं और मनुष्यों के लिए परम सौभाग्य का होता है।
जब सिद्धार्थ ने आर्यसत्यों का साक्षात्कार किया, तो उन्होंने दुनिया को यह समझाया कि दुःख केवल एक सच है, लेकिन उसे समाप्त भी किया जा सकता है। उन्होंने धर्मचक्र को प्रवर्तित किया और संघ की स्थापना की, जिससे लाखों लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने और मुक्ति पाने का रास्ता मिला।
[expand]
जब मैंने जीवन में पहली बार बुद्ध की कोई कथा सुनी — पाठशाला में पढ़ते हुए, बालभारती की पुस्तक में — वह अध्याय था जहाँ राजकुमार सिद्धार्थ एक घायल हंस को बचाने के लिए आगे आते हैं। तब मुझे लगा, शायद बुद्ध ही प्राचीन काल के पहले व्यक्ति रहे होंगे जिन्होंने ‘प्राणी-अधिकार’ को सबसे पहले समझा। मुझे लगा, वे शायद किसी सामाजिक क्रांति के अग्रदूत रहे होंगे — संवेदनशील, सजग और नैतिक।
लेकिन फिर कई सालों बाद मैंने दूसरी कहानी सुनी — वह जिसमें बताया गया कि सिद्धार्थ, बिना किसी को बताए, रात के अंधेरे में अपनी पत्नी और नवजात शिशु को छोड़कर महल से निकल गए। इस कथा ने मुझे उलझा दिया। यह तो उस पहली छवि से एकदम उलट थी। मुझे लगा, “क्या कोई संवेदनशील और सामाजिक रूप से जागरूक व्यक्ति ऐसा कर सकता है?”
एक तरफ वो व्यक्ति है जो एक घायल पक्षी के लिए समाज से लड़ जाता है, और दूसरी तरफ वही व्यक्ति अपने परिवार से मुँह मोड़कर, बिना कुछ कहे, चुपचाप भाग निकलता है?
उस पल मेरे भीतर खिन्नता और घृणा दोनों उमड़ पड़ी। मुझे लगा कि जरूर इस व्यक्ति के चरित्र में कोई गहरी कमी रही होगी — कोई दुर्बलता, कोई डर या कोई छुपा हुआ दोष। भला ऐसा कौन करता है? कौन अपने माता-पिता, पत्नी और शिशु को इस तरह अकेला छोड़कर भाग निकलता है? क्या यह एक ऐसे कायर व्यक्ति की निशानी नहीं है जो पारिवारिक कर्तव्यों का सामना करने से भागता है?
सच्चे और साहसी लोग तो सामना करते हैं — अपने परिवार को बताकर, समझाकर, अपने निर्णय को दिन के उजाले में रखते हैं। लेकिन यहाँ…? कुछ तो गड़बड़ थी। मुझे लगा, शायद उनके भीतर कोई गहरी, अनकही पीड़ा थी — जिसे वो कभी कह नहीं पाए।
और फिर, सालों बाद जब मैंने और गहराई से पढ़ा, समझा — तब पता चला कि ये सारी कहानियाँ… झूठी थीं। मनगढंत। मिथकीय। शायद किसी अंधश्रद्धा, किसी दुष्प्रचार या किसी छवि निर्माण के प्रयास का हिस्सा थीं।
उस क्षण मेरे भीतर एक अजीब सी दोहरी अनुभूति उठी — एक ओर राहत, “शुक्र है! बुद्ध वैसे नहीं थे!” — और दूसरी ओर गुस्सा, “हाउ डेयर यू? किसने बुद्ध जैसे गहन और सत्यनिष्ठ व्यक्ति को इस तरह विकृत कर देने का दुस्साहस किया? और क्यों?”
ऐसा लगा जैसे जिसने ये कहानियाँ गढ़ीं, वह बोधिसत्व की सच्चाई को नहीं, अपनी ही छाया को देख रहा था — और अपनी सीमाओं को उनके चरित्र पर थोप बैठा। जरूर उसी के चरित्र में कोई गहरी कमी रही होगी — कोई दुर्बलता, कोई डर या कोई छुपा हुआ दोष।
धीरे-धीरे समझ में आया कि यह एक गहरा, महीन और व्यवस्थित दुष्प्रचार था — ऐसा प्रचार जो सीधे विरोध नहीं करता, पर धीरे-धीरे किसी तेजस्वी व्यक्तित्व को इतना सामान्य, इतना सांसारिक, इतना “पलायनवादी” और “निराशावादी” बना देता है कि वह हमारे लिए प्रेरणास्रोत न रह जाए।
यह एक तरह की धीमी चरित्रहत्या है — जहाँ आध्यात्मिक साहस की आभा को इस तरह धुंधला कर दिया जाता है कि आने वाली पीढ़ियाँ उस स्वर को पहचान ही न सकें। ताकि जब कोई युवा बुद्ध का नाम सुने तो बस कंधे उचकाकर कह दे, “ओह, वही जो परिवार छोड़कर रात में भाग गया था?”
और यही इस समूचे षड्यंत्र का घिनौना पहलू है — कि हम असल प्रेरणाओं को खो बैठते हैं, और मनगढ़ंत कहानियों को सच मान बैठते हैं।
दरअसल, बुद्ध के प्रारंभिक जीवन के बारे में मूल सूत्र बहुत कम बताते हैं — बस उतना कि श्रोता उनके मानसिक और आध्यात्मिक विकास को समझ सके। लेकिन उनके महापरिनिर्वाण के बाद, जो शून्य उनकी जीवनी में रह गया, उसे भरने के लिए कई काल्पनिक कहानियाँ गढ़ ली गईं — और उन्हीं में से कई ने उनके व्यक्तित्व को एक विकृत रूप दे दिया।
आज बुद्ध को लेकर कई भ्रांतियाँ हैं। लोग उन्हें अपनी-अपनी पसंद की कथाओं से जोड़ते हैं। अनेक चमत्कारी घटनाएँ, उपदेश, और पौराणिक रंग उनके नाम से जोड़ दिए गए — जबकि उनका उनसे कोई लेना-देना ही नहीं था।
लेकिन बुद्ध की असली जीवनी प्राचीन बौद्ध साहित्य में बिखरी पड़ी है — उनके अपने शब्दों में, उनके शिष्यों की साखियों में। हमने उन्हीं स्रोतों से सत्य और प्रमाणिक विवरणों को खोजकर, उन्हें कालक्रम में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है — जितना उसने स्वयं बताया, जिया और सत्य की ओर बढ़ते हुए अपने अनुभवों में समेटा।
[/expand]
बुद्ध इस संसार में एक अनूठा आदर्श हैं — अध्यात्म और सच्चाई के प्रतीक, अहिंसा और करुणा के सर्वोच्च रूप। उनका जीवन एक प्रखर सूरज की तरह हर युग को प्रकाशित करता है, और उनकी शिक्षाएँ समय की हर धारा में हमेशा जीवंत, प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी रहती हैं।
आईए, प्रारंभिक सूत्रों की दृष्टि से बुद्ध के जीवन का साक्षात्कार करें — ऐसा साक्षात्कार जिसमें किसी और की सोच या कल्पना की मिलावट नहीं है। यहाँ वही प्रस्तुत है, जो स्वयं भगवान ने अपने मुख से अपने बारे में कहा — बिना किसी लाग-लपेट के, बिना शब्दों की सजावट के — जस का तस।
आईए, पहली कड़ी में राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म की ओर बढ़ें।