जब हम “धर्म” और “अध्यात्म” की बात करते हैं, तो उस में नैतिक जीवन मूलभूत माना जाता है। नैतिक मूल्यों के बिना धर्म की शुरुवात भी नहीं हो सकती। और धर्म के बिना नैतिकता का कोई विशेष अर्थ या गहराई नहीं बचती। इन दोनों के बिना जीवन दिशा-विहीन हो जाता है। अध्यात्म केवल एक आस्था या विश्वास की बात नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन के लिए एक “नैतिक कम्पास” देती है, जिससे हम सही और गलत के बीच की पहचान स्वयं कर पाते हैं।
श्याम ने जीवन में खूब पैसा कमाया, नाम भी कमाया, लेकिन उसके जीवन में नैतिकता और उसूलों की कमी है। उसकी जीवनशैली आत्मकेंद्रित है, जहाँ दूसरों की भलाई या दया का कोई विशेष स्थान नहीं है। सफलता पाने के बाद भी, उसके भीतर निर्ममता और सहानुभूति की कमी दिखती है। उसे लगता है कि जीवन में लोभ रहना अनिवार्य है, जिसके कारण ही लोग कामकाज के लिए प्रेरित होते हैं।
पैसे और प्रसिद्धि के पीछे भागने के कारण, वह केवल अपना व्यक्तिगत लाभ ही देखता है, और दूसरों की टांग खींचने में पीछे नहीं रहता। इसलिए, उसके अनेक फैसले न केवल उसे, बल्कि उसके आस-पास के लोगों को भी नुकसान पहुँचाते हैं। उसकी स्वार्थपरता और आत्म-केंद्रितता ने उसे अकेला और परेशान कर दिया है। उसे नैतिकता और उसूल का महत्व कभी समझ नहीं आया।
इसके विपरीत, राम के अध्यात्म ने उसे नैतिक रूप से धनी बनाया है, जो उसे विशेष स्पष्टता देती है और तत्काल नैतिक निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। जब भी वह कठिन फैसले लेता है, उसकी नैतिकता हमेशा उसे सही दिशा में मार्गदर्शन करती है। उदाहरण के लिए, एक व्यवसाय में जहाँ वह अधिक लाभ कमा सकता था, उसने ईमानदारी से किसी पर अन्याय नहीं होने दिया और समाज का ख्याल रखा।
राम ने अपने जीवन में सांसारिक उपलब्धियों के बजाय करुणा, सहानुभूति और दूसरों की भलाई को प्राथमिकता दी। उसके लिए सफलता का मतलब वित्तीय लाभ या सामाजिक मान्यता नहीं, बल्कि अपने दुर्गुणों का त्याग और सद्गुणों में वृद्धि होना है। उसके लिए ट्रॉफी का मतलब लालच, द्वेष और भ्रम से छुटना है।
अध्यात्म की दृष्टि से अपना लाभ दूसरों के नुकसान पर उठाया जाना उचित नहीं। नैतिकता स्वार्थपरता के बजाय सामूहिक भलाई की प्रेरणा देती है। लेकिन सामूहिक भलाई करने में अध्यात्म के नुकसान को भी अनुचित मानती है।
नैतिकता और अध्यात्म का तालमेल हमें सही और गलत की पहचान करने में मदद करता है। श्याम जैसे लोग, जो केवल अपनी इच्छा और लाभ के पीछे भागते हैं, उन्हें अक्सर नैतिक दिशा से भटकने में देर नहीं लगती। नैतिक मूल्यों की कमी, उन्हें दोषपूर्ण और अन्यायपूर्ण फैसले लेने से रोक नहीं पाती है, चाहे वह निजी जीवन में हो या पेशेवर जीवन में।
दूसरी ओर, राम जैसे लोग, जो अध्यात्म के नियमों से चलते हैं, उनके लिए नैतिकता, मानों उनके शरीर का एक अत्यावश्यक अंग हैं, जिसे थोड़ी देर के लिए तोड़कर अलग नहीं किया जा सकता। ऊँचे नैतिक मूल्य उनकी जीवनशैली का अभिन्न अंग होते हैं। सत्य, अहिंसा, न्याय और करुणा उनके दैनिक अध्यात्म की सांस होते हैं, जो रुक जाएँ तो मौत के बराबर महसूस होती है।
यह उन्हें न केवल जीवन को सार्थक और सफल बनाते हैं, बल्कि आस-पास के लोगों को भी लाभ पहुँचाते हैं।