नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

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मृत्यु/परलोक का रहस्य

हालाँकि मृत्यु की सत्य सभी जीवों को छूता है, लेकिन हैरानी है कि फिर भी इसके बारे में अध्यात्म के अलावा और कोई कही शिक्षा या मार्गदर्शन नहीं दिया जाता। इसलिए हर एक के मन में मौत के प्रति दृष्टिकोण बहुत ही भिन्न होते हैं।

कई लोग इसे अपना एक अंत मानकर उससे दूर भागने लगते हैं, तो कोई जीवन से तंग आकर उसकी ओर (आत्महत्या करने के लिए) भागने लगते हैं। इस भागमभागी के बजाय अध्यात्म इसे एक संतुलित तरह से निपटती है।

एक ओर, श्याम जहाँ, किसी अपनी या अपने प्रिय व्यक्ति की मृत्यु का सोच भी एक भारी आघात महसूस होती है, जो शोक, व्यथा, निराशा और अवसाद में डुबाने को आतुर है। मृत्यु के बाद के जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण शून्य है, जिसे श्याम ने कभी गहराई से सोचा तक नहीं। उसे जीवन के अंत के बारे में कोई सांत्वना नहीं मिलती है, जो उसे और अधिक अकेला और असुरक्षित महसूस कराती है।

वहीं, अध्यात्म ने राम को मूलभूत मार्गदर्शन दिया है, और उसे अपनी और अपने प्रियजनों की मृत्यु के सत्य को स्वीकार कराया है और तैयार भी कराया है। उसके लिए जीवन भौतिक अनुभवों का संग्रह नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विकास और अंतिम मुक्ति की ओर बढ़ते कदम है, जो मृत्यु के बाद भी जारी रहते हैं।

निष्कर्ष

इस तरह, यह स्पष्ट है कि अध्यात्म एक वैकल्पिक जीवनशैली है, जीवन को देखने का एक गहरा दृष्टिकोण है, जो जीवन की वास्तविकता को समझने और उसके साथ सामंजस्य बिठाने का मार्ग प्रदर्शित करती है।

अध्यात्म का यह सफर केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से हमारे समाज और दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है। अध्यात्म से हम जीवन की गहराई में उतरते हुए उसके अनेक पहलुओं को छूकर समझते हैं, जिसे भोगवादी दृष्टिकोण देख भी नहीं पाता है।

नास्तिक या भोगवाद के प्रशंसक दुनिया के सारी बुराई, हिंसा और अन्याय को धर्म के नाम पर थोपते हैं। लेकिन जिन लोगों ने इस दुनिया को बर्बाद किया है, वे ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार आध्यात्मिक नहीं बल्कि भोगवादी प्रवत्ति के लोग थे, जिन्होंने धर्म के नाम का दुरुपयोग कर अपनी भोगवादी प्यास को चरम सीमा पर ले गए।

अफसोस है कि आज भी लोग यही करते हैं। उनके भक्त आध्यात्मिक, नैतिक और दिमागी रूप से दिवालिया लोग होते हैं। दूसरी-ओर, वे आध्यात्मिक लोग ही हैं जो अंततः उनके खिलाफ आवाज भी उठाते है और क्रांति करते हैं।

इस बात पर दोराय नहीं है कि दुनिया को अति भोगवाद ने ही बर्बाद किया है। और अध्यात्म से ही दुनिया की तबाही रोकी जा सकती है। आध्यात्मिक होकर ही हम एक बेहतर, अधिक प्रगतिशील और करुणाशील समाज की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

किन्तु अध्यात्म दुनिया के आधार पर ही नहीं चलता है। बल्कि वह मानवों को मिला एक ऐसा उपकरण है, जो हमें जीवन की गहराइयों को समझने और उसके हर पहलू का सामना करने की क्षमता प्रदान करता है। आध्यात्मिकता एक ऐसी ऊर्जा है, जो हमारे भीतर के अंधकार को रोशन करती है।

यदि हम चाहते हैं कि हमारा जीवन सार्थक और पूर्ण हो, तो हमें आध्यात्मिकता की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। इस यात्रा में आप न केवल अपने मूलस्वभाव से परिचित होंगे, बल्कि एक नए, उज्ज्वल और संतोषजनक जीवन की ओर भी बढ़ेंगे। यह एक ऐसा रास्ता है जो हमें न केवल हमारी पहचान को पुनः प्राप्त करने में मदद करेगा, बल्कि हमें जीवन के वास्तविक अर्थ को खोजने की प्रेरणा भी देगा।

महात्मा गांधी ने कहा था —

“जो अपने भीतर शांति को खोजता है, वह बाहरी संघर्षों से आज़ाद हो जाता है।”

आध्यात्मिकता, इसी शांति की खोज है, जो हमें न केवल खुद से, बल्कि इस ब्रह्मांड से भी जोड़ती है। आइए, हम इस यात्रा को अपनाएँ और अपने जीवन में आध्यात्मिकता की रोशनी को फैलाएँ।

समाप्त!


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