नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

शुरुवात कैसे करें?

तिसरण | सोतापति अङ्ग | दान | शील | व्रत | उपोसथ | भावना

श्रोतापति के चार अंग

धर्म की सच्चाई उसके ऊँचे दावों से नहीं, उसके उपजने वाले परिणामों से सिद्ध होती है। इस धर्म की कसकर परीक्षा लेनी चाहिए और उसके दावों को चुनौती देने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन इस परीक्षण की शुरुवात करने से पहले धर्म को ठीक से धारण करना अनिवार्य है। बुद्ध के अनुसार, धर्म का प्रथम श्रोतापति फल चखने के लिए इन चार घटकों को पूर्ण करना आवश्यक है:

(१) सत्पुरुष संगति

धर्म की धारा में बहने के लिए, पहले एक सच्चे धार्मिक व्यक्ति से जुड़ना आवश्यक है। बुद्ध के अनुसार, ऐसा व्यक्ति श्रद्धा, शील, त्याग और अन्तर्ज्ञान से संपन्न होना चाहिए। उसका चरित्र और आचरण शुद्ध हो, और वह धर्म के सिद्धांतों के अनुसार जीवन व्यतीत करता हो।

अर्थात, उसकी त्रिरत्नों में आस्था दृढ़ हो, और वह पंचशील का सच्चा पालक हो, उदार हृदय वाला दानी हो, और अंतर्ज्ञानी हो। धर्म उसकी अनुभूति में उतरा हो। उसकी गहरी बातों में धर्म की सूक्ष्मता झलकती हो। बुद्ध ऐसे सत्पुरुष के गुण आगे बताते हैं कि उसमें कृतज्ञता और सभ्यता भी झलकती हो। वह अपने दुर्गुणों को छिपाए बिना, अपने सद्गुणों पर गर्व न करे, जबकि दूसरों के दुर्गुणों को छिपाकर उनके सद्गुणों को उभारता हो।

बुद्ध का सुझाव है कि ऐसा सत्पुरुष मिलने पर, भले ही उसकी उम्र अधिक हो या कम, उससे मित्रता करनी चाहिए। उससे वार्तालाप कर, धर्म के प्रश्नोत्तर कर के अपनी सभी शंकाओं का समाधान करना चाहिए। उससे श्रद्धा, शील, त्याग और अन्तर्ज्ञान सीखकर अपनी धर्म संपन्नता बढ़ानी चाहिए।

(२) सद्धर्म श्रवण

धर्म का परीक्षण करने के लिए, प्रामाणिक और वैध धर्म को सुनना अनिवार्य है। यदि आपने धर्म के नाम पर विभिन्न (सामाजिक/सांस्कृतिक) मान्यताओं के मिश्रण को अपनाया है, तो आप इस परीक्षण के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

जैसे एक वैज्ञानिक अपने प्रयोग से पहले उस सिद्धांत के वैध और प्रामाणिक पहलुओं को जानता है, तब वह परीक्षण आरंभ करता है। उसके परीक्षण का आधार प्रतिपादित और प्रमाणित सिद्धांत होते हैं, झूठी अफवाहें नहीं। इसी प्रकार, आपको केवल सच्चा और प्रामाणिक धर्म सुनने की आवश्यकता है—जो पूर्णतः शुद्ध और अप्रदूषित हो, और केवल बुद्ध द्वारा प्रतिपादित किया गया हो, न कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा।

(३) उचित चिंतन

अक्सर हमारा ध्यान ऐसी बाहरी या आंतरिक बातों पर केंद्रित होता है, जो चित्त को अनावश्यक रूप से दूषित कर देती हैं। लेकिन जब हम संयम बरतते हैं, तो हमारा चित्त शान्त, स्थिर, और एकाग्र बना रह सकता है। इसलिए बुद्ध हमें सलाह देते हैं कि हमें संयम का पालन करना चाहिए। हमें उन अकुशल बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए जो कामुकता, बेहोशी, या अस्तित्व की चिंता को बढ़ावा देती हैं। इसके साथ ही, हमें व्यर्थ और अनुचित चिंतन से भी बचना चाहिए, जो मिथ्या दृष्टि को जन्म दे सकती हैं।

इसके बजाय, बुद्ध हमें कुशल विचारों पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव देते हैं, जो कामुकता, बेहोशी, या अस्तित्व की चिंता मिटा दें। साथ ही, इस तरह की उचित बातों पर चिंतन करना चाहिए —

  • ऐसा दुःख का स्वरूप (पाँच उपादान से आसक्ति) है…
  • ऐसी उसकी उत्पत्ति (तृष्णा से) है…
  • ऐसा उसका निरोध (तृष्णा का त्याग) है…
  • ऐसा उसके निरोध का (आर्य अष्टांगिक) मार्ग है।

इस तरह के उचित चिंतन से अंतर्दृष्टि गहराने लगती है।

(४) धर्मानुसार धर्म का प्रतिपादन

कुछ लोग धर्म सुनने के बावजूद अपने ही मार्ग पर चलते हैं और अपने ईजाद किए हुए तरीकों से साधना करते हैं। कुछ अन्य किसी दूसरे गुरु द्वारा प्रस्तुत साधना का अभ्यास करते हैं। जबकि कई लोग अपनी पसंद की साधना को ही वर्षों तक दोहराते रहते हैं, आवश्यक साधनाओं की ओर ध्यान नहीं देते। कुछ लोग साधना को अधूरा छोड़ देते हैं।

हालांकि, जो साधना आपके लिए वास्तव में उपयुक्त और आवश्यक है, उसे बुद्ध द्वारा बताए गए सटीक तरीके से करना फलदायी होता है। इसलिए, धर्मानुसार धर्म की साधना करना ही सफलता की कुंजी है।

बुद्ध बताते हैं कि जब किसी व्यक्ति में ये चार घटक पूर्ण हो जाते हैं, तब वह धर्म की धारा में प्रवेश कर श्रोतापति फल प्राप्त करता है और निर्वाण की ओर प्रवाहित होने लगता है।


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