जब इंसान जन्म लेता है और बचपन की क्रीडा से गुजरते हुए बड़ा होता है, तो वह अपने जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में आगे बढ़ता है। दरसरल वह जीवन में एक पूर्णता और राहत की तलाश में होता है, जो उसे विभिन्न रास्तों पर ले जाती है — कभी धन की ओर, कभी प्रसिद्धि की ओर, और कभी रिश्तों की ओर, तो कभी भीतर अध्यात्म की ओर भी।
आइए, इसे राम और श्याम के उदाहरण से समझते हैं।
श्याम एक ऐसा व्यक्ति है जो पूरी तरह से भौतिक उपलब्धियों में विश्वास करता है। उसने अपनी ज़िंदगी धन, सफलता और प्रतिष्ठा पाने में खपा दी है। उसे लगता है कि जितना अधिक वह कमाएगा, उतनी ही उसकी खुशी बढ़ेगी। और कुछ हद तक यह सच भी है — नई गाड़ी खरीदने, बड़ा घर लेने, और अपने बैंक खाते को बढ़ता हुआ देखने पर उसे तत्काल संतुष्टि का अहसास होता है।
लेकिन यह संतुष्टि तत्काल ही होती है और कुछ समय बाद फीकी पड़ जाती है। हर बार, जब वह एक नया लक्ष्य हासिल कर लेता है, उसे फिर से एक नई चीज़ की आवश्यकता होती है जो उसे फिर वही संतुष्टि का एहसास करा सके। यह एक ऐसा चक्र है जो कभी समाप्त नहीं होता।
इसके विपरीत, राम भी पैसे कमाता है, अपने परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य निभाता है, लेकिन उसका जीवन अध्यात्म पर टिका है। राम ने धर्म को सुना है, और वह धर्म के अनुसार अपने जीवन को संचालित करने का प्रयास करता है। उसके जीवन में नैतिकता, सद्भावना और अंतर्दृष्टि का महत्व है, जिसने उसे सिखाया है कि बाहरी उपलब्धियाँ खुशी देती हैं, लेकिन असली शान्ति, संतोष और राहत भीतर से आती है।
श्याम की ज़िंदगी बाहरी चमक और उपलब्धियों पर टिकी है। हर बार उसे बाज़ार से एक नई चमकती चीज़ और उपलब्धि के ईनाम की ज़रूरत होती है। दूसरों के पास एक बेहतर चमकती चीज़ देखकर, उसे दरिद्रता और जलन महसूस होती है।
वह इसी प्रयास में रहता है कि एक ऊँचा मुकाम हासिल करे, ताकि उसे कोई साधारण न समझ लें। उसे यही अपेक्षा अपने परिवार-जनों से भी है। वह अपने संतानों से ऊँचे अंक और बड़ी ट्रॉफीयों की उम्मीद रखता है। उसके लिए सादा जीवन दरिद्रता, हीनता और अपमानजनक है। उसे ‘सामाजिक जीवन’ एक स्पर्धा लगती है, जिसमें दूसरों को किसी तरह से हराकर या उन्हें नीचा दिखाकर ही अपना अस्तित्व बचा रह सकता है।
इसलिए वह लोगों के आगे अपनी और परिवारजनों की गलतियों और नाकामयाबियों को छिपाता है, और एक आदर्शमयी प्रतिमा स्थापित कर, उसे खूब चमकाते रहने का प्रयास करते रहता है। हर समय, वह एक दौड़ में लगा हुआ है, जिसमें राहत नहीं है, सुकून नहीं हैं, लेकिन थकने और रुकने का अर्थ पराजय हैं।
दूसरी ओर, राम की प्राथमिकताएँ भिन्न हैं, जिसे बाहरी दिखावे से कोई मतलब नहीं। उसका ध्यान मन की स्वच्छता और स्थिर शान्ति पर होता है। उसके परिवार के रिश्ते सच्चाई और स्नेह पर आधारित हैं, जिसमें सहानुभूति और एक-दूसरे को आधार देना दिखाई देता है। उसे अपने बच्चों से बड़ी उपलब्धियों के बजाय एक सच्चे, नैतिक और अहिंसक जीवन की अपेक्षा है।
वह सामाजिक न्याय और आपसी सहयोग का हिमायती लगता है। उसे अक्सर सामाजिक विवादों में बुलाया जाता है, जहाँ उसके निष्पक्ष, न्यायसंगत और अहिंसक सुझावों का सम्मान होता है। लोगों को उसे देखकर शान्ति, राहत और मजबूती महसूस होती है, उसके ‘सादे जीवन उच्च विचार’ को देखकर सौन्दर्यता और मधुरता की अनुभूति होती है। लेकिन जब कोई उसकी या उसके परिवार की तारीफ़ करे तो वह झेंपकर अपने दुर्गुणों को बताने लगता है।
श्याम के जीवन में ज्ञान का स्त्रोत मीडिया है जो उसे लगातार नये ट्रेंड बताते रहता है। मीडिया जिसे ‘विशेषज्ञ’ बताएँ, उन सभी सुझावों को श्याम मान लेता है। कभी एक चमकती वस्तु का महत्व सुनकर उसे खरीदने लगता है, कभी एक व्यायाम का महत्व सुनकर उसे करने लगता है, तो कभी एक कंपनी का महत्व सुनकर उसमें निवेश करने लगता है, तो कभी एक सब्जी का महत्व सुनकर उसे खाने लगता है।
यही नहीं, वह उन तथाकथित विशेषज्ञों से सुनकर ही अपनी सामाजिक और राजनीतिक धारणाएँ बनाता है। जिसे मीडिया कोसे, उसे श्याम भी नफरत करते हुए कोसने लगता है, और जिसे भला बताएँ, उसे श्याम अपना कर अहंकार करने लगता है। मीडिया से सुनकर श्याम किसी विशेष धर्म, समुदाय या पक्ष से नफरत करने लगता है, और ऑफिस और पड़ोसियों से बहस करता है।
इसके अलावा, जो अमीर लोग करते हुए दिखें, उसे ही श्याम अपने जीवन में धारण करता है। उनके जैसे ही, वह अपने बच्चों से एक भावनात्मक दूरी रख, एक विशेष व्यवहार करता है, ताकि वे दुनिया में ऊँचा स्थान हासिल करें।
दूसरी ओर, राम का जीवन पुराने सिद्धांतों पर चलते हुए दिखायी देता है, लेकिन चर्चा करने पर लोगों को उसकी धारणाओं में स्पष्टता और बातों में गहरा अन्तर्ज्ञान महसूस होता है। पुराने ग्रन्थों ने राम को सिखाया है कि संसार की चाल में चलने के बजाय अकालिक सिद्धांतों पर चलना चाहिए, जो आंतरिक स्थिरता और अन्तर्ज्ञान बढ़ाते हो। इसलिए राम मीडिया का उपभोग और उस पर विश्वास कम ही करता है।
वह अपने जीवन को एक यात्रा के रूप में देखता है — एक ऐसी यात्रा जिसके दौरान तत्काल सुख और बाहरी सफलता का महत्व सीमित है, परंतु जिसका अंतिम लक्ष्य बंधनमुक्ति है, परमशांति है। इसलिए वह समय निकालकर पुराने ग्रन्थों को पढ़ता है, बताएँ सूत्रों के अनुसार चिंतन करता है, ध्यानसाधना करता है, और उसे अपने अनुभव पर उतारने के लिए प्रयास करता है।
श्याम का जीवन दूसरों से मान्यता प्राप्त करने के लिए आतुर लगता है। उसे समाज में स्वीकार्यता और सम्मानजनक स्थान की अपेक्षा है। इसलिए श्याम की चंचल नजर दूसरों पर टिकी होती है, और उसका बाहरी चीजों के पीछे दौड़ने में समय निकल जाता है। लेकिन वह तब भी भीतर से खालीपन और एक अंतहिन प्यास महसूस करता है।
भले ही उसके पास पैसा और शोहरत है, लेकिन वह मानसिक शांति से कोसों दूर है। उसे अकेलेपन से डर लगता है, उसके रिश्ते प्रभावित होते हैं, उसकी मानसिकता विक्षिप्त रहती है, और वह खुद को हमेशा किसी अधूरेपन से घिरा हुआ महसूस करता है।
दूसरी ओर, राम के जीवन की असली पूर्ति दूसरों से मान्यता पाने या समाज में ऊँचा स्थान हासिल करने में नहीं है, बल्कि अपनी आंतरिक शांति और आत्म-ज्ञान में है। इसलिए उसे एकांतवास में गहरी शांति, मानसिक स्थिरता और आध्यात्मिक बल महसूस होता है। वह अपनी ज़िंदगी के उतार-चढ़ावों को उसी मानसिक स्थिरता से स्वीकार करता है।
उसके पास भी संघर्ष हैं, लेकिन वह उन संघर्षों से भागता नहीं है। उसे बाहर से चाहे जितनी बड़ी खुशी या दुःख मिले, वह उसमें डूबने से खुद को बचाता है। और यही कारण है कि वह जीवन की हर परिस्थिति में, चाहे वह कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो, संतुष्ट और शांत रहता है। उसके लिए, अध्यात्म सिर्फ एक साधना नहीं, बल्कि जीवनशैली है।