नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

चार पत्नियों वाला पुरुष

एक सफल और सम्पन्न व्यक्ति था, जिसकी चार पत्नियाँ थीं। जब उसका अंत निकट आया, तो उसने अपने पास पहले सबसे नई और जवान चौथी पत्नी को बुलाया।

“प्रिय,” उसने कहा, उसकी आकर्षक देह को सहलाते हुए, “अब मेरी मृत्यु कुछ ही दिनों में होने वाली है। तुम्हारे बिना मुझे बहुत अकेलापन लगेगा। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?”

“बिलकुल नहीं!” उस प्रसिद्ध सुंदरी ने कहा। “मैं यहीं रुकूँगी। तुम्हारी प्रशंसा में शोकसभा में बोलूँगी, लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं।” और वह गर्व के साथ कमरे से निकल गई।

उसकी यह ठंडी अस्वीकृति, मरते हुए व्यक्ति के हृदय में छुरी की तरह चुभ गई। उसने तो चौथी पत्नी पर सबसे अधिक ध्यान दिया था, उसे हर बड़े अवसर पर साथ ले जाता था। वह उसकी प्रतिष्ठा और अभिमान का प्रतीक बन गई थी। पर अब मालूम हुआ कि उसने जितना प्रेम किया, उतना प्रेम उसे मिला नहीं।

लेकिन उसके पास अब भी तीन पत्नियाँ थीं। उसने तीसरी पत्नी को बुलाया, जिससे उसने मध्यम आयु में विवाह किया था। उसके लिए उसने बहुत संघर्ष किया था। वह उसे बहुत चाहता था — यह पत्नी बहुत आकर्षक थी, और बहुत से पुरुष उसे चाहते थे। लेकिन वह हमेशा वफ़ादार रही थी और उसे सुरक्षा का एहसास कराती थी।

“स्वीटहार्ट,” उसने कसकर पकड़ते हुए कहा, “मैं मरने वाला हूँ। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?”

“कदापि नहीं!” उस व्यावसायिक लहजे में बोली। “ऐसा कोई नहीं करता। मैं तुम्हारे लिए एक शानदार अंतिम संस्कार करवाऊँगी, लेकिन फिर मैं तुम्हारे बेटों के साथ चली जाऊँगी।” तीसरी पत्नी की यह भविष्य की बेवफाई उसे भीतर तक हिला गई।

अब उसने अपनी दूसरी पत्नी को बुलवाया।

यह वह थी जिसके साथ वह बचपन से जुड़ा था। वह सुंदर नहीं थी, लेकिन हर मुश्किल में हमेशा साथ रही। उसने सलाह दी, सहायता की — वह उसकी सबसे विश्वसनीय मित्र थी।

“प्रिय,” उसने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “मैं मरने वाला हूँ। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?”

“मुझे क्षमा करना,” उसने धीरे से कहा, “मैं तुम्हारे साथ केवल श्मशान तक जा सकती हूँ, उससे आगे नहीं।”

अब वह व्यक्ति पूरी तरह टूट गया।

अंत में, उसने अपनी पहली पत्नी को बुलाया — जिसे वह जीवन भर जानता था, लेकिन अक्सर उपेक्षित करता रहा। खासकर जब से उसकी तीसरी और चौथी पत्नियाँ आई थीं। यह वही पत्नी थी जो हमेशा पृष्ठभूमि में चुपचाप काम करती रही, जिससे उसका जीवन असल में सम्भव हुआ।

जब वह अंदर आई, तो वह कमज़ोर और कृशकाय थी, फटे पुराने कपड़ों में। उसे देखकर वह लज्जित हो गया।

“प्रिये,” उसने विनती करते हुए कहा, “मैं अब मरने वाला हूँ। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?”

“बिलकुल चलूँगी,” उसने शांत स्वर में कहा। “मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ चलती हूँ — जन्म-जन्मांतर तक।”

अब मैं आपको उन चार पत्नियों के असली नाम बताता हूँ:

  • पहली पत्नी थी कर्मा (हमारे कर्म)
  • दूसरी पत्नी थी कामिनी (भोग और परिवार)
  • तीसरी पत्नी थी कंचन (धन-दौलत)
  • चौथी पत्नी थी किर्ति (यश और प्रसिद्धि)

अब, कृपया इस कहानी को फिर से पढ़िए, अब जब आपको इन चारों का सच्चा रूप पता चल चुका है। सोचिए — किसका आपने सबसे ज़्यादा ध्यान रखा है? कौन आपके साथ अंत में सच में जाएगा?


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