जापान में बौद्ध विहारों के बग़ीचे बहुत प्रसिद्ध हैं। कई साल पहले, एक विहार था, जिसका बग़ीचा तथाकथित तौर पर सब से सुंदर था। यात्रियों के झुंड देश भर से आते थे, केवल उसका सुंदर रख-रखाव देखने के लिए, जो सादगी भरा था।
एक दिन एक बूढ़ा भंते दौरे पर आया। वह सुबह बहुत जल्दी आया था, सूर्योदय के ठीक बाद। वह यह जानना चाहता था कि यह बग़ीचा क्यों सबसे प्रेरणादायक माना जाता था, इसलिए उसने खुद को एक बड़े झाड़ी के पीछे छुपा लिया, ताकि वह बग़ीचे के बाकी हिस्से को अच्छे से देख सके।
वह एक युवा बागवानी भंते को विहार से बाहर आते हुए देखा, जो दो बांस की टोकरी ले कर आ रहा था। अगले तीन घंटे तक, वह उस युवा भंते को देखता रहा, जो धीरे-धीरे प्रत्येक पत्ते और शाखा को उठाकर देखता था जो बग़ीचे में फैलने वाले बेर के पेड़ से गिर गए थे। जैसे ही वह हर पत्ते और शाखा को उठाता, वह उसे अपनी कोमल हथेली में पलटता, उसे देखता, उस पर विचार करता; और अगर वह उसे पसंद आता, तो वह उसे एक टोकरी में सावधानी से रख देता। अगर वह उपयोगी नहीं होता, तो वह उसे दूसरी टोकरी, कचरे की टोकरी में गिरा देता। हर पत्ते और शाखा को इकट्ठा करने और सोचने के बाद, कचरे की टोकरी को विहार के पीछे के ढेर में खाली करने के बाद, वह चाय पीने के लिए रुकता और अगले महत्वपूर्ण चरण के लिए अपने मन को शांत करता।
युवा भंते ने फिर तीन और घंटे बिताए, पूरी तन्मयता, सावधानी और कौशल के साथ, प्रत्येक पत्ते और शाखा को बग़ीचे में ठीक से सही स्थान पर रखकर। अगर वह किसी शाखा के स्थान से संतुष्ट नहीं था, तो वह उसे हल्का सा घुमा देता या उसे थोड़ा आगे बढ़ा देता, जब तक कि उसे हल्की सी मुस्कान के साथ संतोष नहीं हो जाता और फिर वह अगले पत्ते पर आगे बढ़ जाता, उसके स्थान के लिए बस सही आकार और रंग चुनता। उसकी बारीकियों पर ध्यान देने की क्षमता बेजोड़ थी। रंग और आकार की व्यवस्था में उसकी महारत अद्वितीय थी। प्राकृतिक सुंदरता की उसकी समझ अत्युत्तम थी। जब वह समाप्त हुआ, तो बग़ीचा निर्दोष दिखाई दे रहा था।
तभी वह बूढ़ा भंते अपनी झाड़ी के पीछे से बाहर आया। टूटे दांतों वाली मुस्कान के साथ, उसने युवा बागवानी भंते को बधाई दी, “अच्छा किया! वाकई अच्छा किया, भंते! मैंने तुम्हें पूरे सुबह देखा है। तुम्हारी मेहनत सर्वोच्च प्रशंसा के योग्य है। और तुम्हारा बग़ीचा… हाँ! तुम्हारा बग़ीचा आं… ‘लगभग’ परफेक्ट है।”
युवा भंते का चेहरा पीला पड़ गया। उसका शरीर जम-सा गया जैसे उसे बिच्छू ने डंक मारा हो। उसकी आत्मसंतुष्टि की मुस्कान चेहरे से गायब हुई और शून्य के विशाल गड्ढे में गिर गई। जापान में, आप कभी भी बूढ़े मुस्काते भिक्षुओं के बारे में निश्चित नहीं हो सकते कि वे कितने ज्ञानी हैं!
“आ…आप कक…क्या…कहना चाहते हैं?” उसने अपने डर के बीच हकलाते हुए पूछा। “क्या आप क…कहते हैं, ‘लगभग’ परफेक्ट?”
वह बूढ़े भंते के चरणों में गिर पड़ा और उसने दंडवत प्रणाम किया। “हे गुरुदेव! हे परमज्ञानी! मुझ पर कृपा करें! आपकी करुणा बरसाएं। आप निश्चित ही भगवान बुद्ध द्वारा भेजे गए हैं ताकि मुझे दिखा सकें कि मेरे बग़ीचे को ‘पूरा’ परफेक्ट कैसे बनाया जाए। मुझे सिखाइए, हे तपस्वी! मुझे मार्ग दिखाइए!”
“सच में दिखाऊं?” बूढ़े भंते ने पूछा। उनके बूढ़े पुराने चेहरे पर शरारत से झुर्रियां पड़ने लगी।
“ओ हाँ, गुरुदेव, कृपा कर दिखाइए!”
फिर वह बूढ़ा भंते बग़ीचे के बीच में आया। उसने अपनी पुरानी, लेकिन अब भी मजबूत बाहों को उस पत्तों से लदे बेर के पेड़ के चारों ओर लपेट लिया। फिर, एक पागल संत की हंसी के साथ, उसने उस गरीब पेड़ को जोर से हिलाया! पत्तियाँ, शाखाएँ, और छाल हर जगह गिरने लगीं, और फिर भी वह बूढ़ा भंते उस पेड़ को हिलाता रहा। जब कोई और पत्तियाँ नहीं गिरीं, तो उसने रुककर देखा।
युवा भंते सन्न रह गया। बग़ीचा खराब हो गया था। सुबह भर की मेहनत बर्बाद हो गई थी। वह बूढ़े भंते को मार डालना चाहता था। लेकिन बूढ़ा भंते बस अपने काम की सराहना करते हुए इधर-उधर देखने लगा। फिर एक ऐसी मुस्कान के साथ, जो गुस्से को पिघला दे, उसने धीरे से युवा भंते से कहा, “अब तुम्हारा बग़ीचा पूरा परफेक्ट है!”