मुझे बताया गया था कि डिप्रेशन ने एक बहु-अरब डॉलर की इंडस्ट्री को जन्म दिया है। यह वाकई डिप्रेसिंग है! दूसरों के दुखों से अमीर बनना सही नहीं लगता। हमारे कठोर अनुशासन में, भिक्षुओं को पैसे रखने की अनुमति नहीं है, और हम अपने प्रवचनों, परामर्शों, या किसी भी अन्य सेवा के लिए कभी कोई शुल्क नहीं लेते।
एक अमेरिकी महिला ने मेरे एक सह-भिक्षु को फोन किया, जो ध्यान सिखाने के लिए प्रसिद्ध थे, और ध्यान सीखने के बारे में पूछा।
“मैंने सुना है आप ध्यान सिखाते हैं,” उसने फोन पर धीरे से कहा।
“हाँ, मैडम, सिखाता हूँ,” उन्होंने शालीनता से उत्तर दिया।
“कितना चार्ज करते हो?” उसने सीधे पूछा।
“कुछ नहीं, मैडम।”
“तो फिर आप अच्छे हो ही नहीं सकते!” उसने जवाब दिया और फोन काट दिया।
मुझे भी कुछ साल पहले एक पोलिश-ऑस्ट्रेलियाई महिला का ऐसा ही फोन आया था:
“क्या आज रात आपके केंद्र में कोई प्रवचन है?” उसने पूछा।
“हाँ मैडम। रात 8:00 बजे शुरू होता है,” मैंने बताया।
“कितना देना पड़ता है?” उसने पूछा।
“कुछ नहीं, मैडम, यह मुफ़्त है,” मैंने समझाया। फिर थोड़ी चुप्पी छा गई।
“आपने मेरी बात समझी नहीं है,” उसने ज़ोर देकर कहा। “मुझे उस प्रवचन को सुनने के लिए कितने पैसे देने होंगे?”
“मैडम, आपको कोई पैसे नहीं देने हैं, यह मुफ़्त है,” मैंने यथासंभव शांतिपूर्वक कहा।
“सुनो!” उसने फोन पर चिल्लाते हुए कहा। “डॉलर! सेंट्स! कितना देना पड़ेगा?”
“मैडम, आपको कुछ भी नहीं देना पड़ेगा। बस अंदर आ जाइए। पीछे बैठिए, और जब चाहें निकल जाइए। कोई आपका नाम या पता नहीं पूछेगा, कोई पर्ची नहीं दी जाएगी, और दरवाज़े पर कोई चंदा भी नहीं माँगा जाएगा। यह पूरी तरह से मुफ़्त है।”
अब एक लंबा विराम था।
फिर उसने, सच में जानना चाहती हुई, पूछा, “तो फिर आप लोगों को इससे क्या मिलता है?”
“सुख, मैडम,” मैंने उत्तर दिया। “सुख।”
आजकल, जब कोई पूछता है कि ये शिक्षाएँ कितने की हैं, तो मैं कभी नहीं कहता कि ये मुफ़्त हैं।
मैं कहता हूँ — ये अनमोल हैं।