हर दिन की ज़िंदगी में, चाहे हालात जैसे भी हों, कुछ न कुछ किया जा सकता है – और अगर कुछ भी न कर सको, तो कम से कम बैठकर अपनी आख़िरी कप चाय का आनंद तो लिया ही जा सकता है।
ये कहानी मुझे मेरे एक पुराने साथी ने सुनाई थी। हम दोनों स्कूल में शिक्षक थे, पर उससे पहले वे द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना में सैनिक रह चुके थे।
वो एक बार बर्मा के जंगलों में गश्त पर थे – जवान, घर से बहुत दूर, और डरे हुए। तभी उनके गश्ती दल का स्काउट दौड़ता हुआ वापस आया और कप्तान को बुरी खबर सुनाई – उनकी छोटी सी टोली ने अनजाने में दुश्मन जापानी सेना के एक बड़े समूह के बीच में प्रवेश कर लिया था। वे बुरी तरह घिर चुके थे, संख्या में बहुत कम थे, और बच निकलने की कोई राह नहीं थी।
वो युवा सैनिक मौत के लिए खुद को तैयार करने लगा।
उसे लगा कि कप्तान अब आदेश देंगे कि दुश्मन से भिड़कर रास्ता बनाओ – यही ‘मर्दाना’ काम है। शायद कोई एक-दो बच जाएँ, और अगर नहीं, तो मरते-मरते कुछ दुश्मन को भी साथ ले चलें – यही तो सैनिक करते हैं।
पर कप्तान ने कुछ और ही किया। उन्होंने आदेश दिया – सब यहीं बैठो, और चाय बनाओ। आखिरकार, ये ब्रिटिश सेना थी!
वो जवान सोचने लगा कि शायद उसके कप्तान का दिमाग खराब हो गया है। दुश्मन चारों तरफ से घेरा डाले खड़ा है, मरने की घड़ी सामने है – और ये जनाब चाय की बात कर रहे हैं?
पर सेना में आदेश का पालन करना पड़ता है। सबने चुपचाप बैठकर चाय बनाई, यह मानकर कि यह उनकी आख़िरी चाय होगी।
अभी चाय खत्म भी नहीं हुई थी कि स्काउट वापस आया और चुपके से कप्तान से कुछ कहा। कप्तान ने सबका ध्यान खींचा और कहा, “दुश्मन की टुकड़ियाँ आगे बढ़ गई हैं। अब एक रास्ता खाली है। अपना सामान चुपचाप समेटो और निकल चलो।”
सभी सुरक्षित निकल आए – और तभी तो वो बुज़ुर्ग सैनिक मुझे सालों बाद ये कहानी सुना पाए।
उन्होंने कहा कि उस कप्तान की बुद्धिमानी ने न केवल उस दिन उनकी जान बचाई, बल्कि जीवन में कई बार उन्हें ऐसे ही मौत जैसे हालात से निकाल दिया।
कई बार ऐसा हुआ कि जीवन के किसी कोने में वे फिर से ‘घिर’ गए – गंभीर बीमारी, भारी दुख, कोई बड़ी मुसीबत – चारों ओर संकट ही संकट, कोई राह नहीं दिखती थी।
अगर बर्मा वाला अनुभव न होता, तो वो शायद लड़ पड़ते, रास्ता जबरदस्ती बनाते, और हालात और बिगाड़ बैठते। लेकिन उस कप्तान से सीखी एक बात ने उन्हें बचाया – जब सब ओर संकट हो, तो बस बैठ जाओ… और एक कप चाय बना लो।
दुनिया हर पल बदल रही है। जीवन एक बहाव है। वो चाय पीते, अपनी ऊर्जा बचाते, और इंतज़ार करते उस पल का जब कुछ किया जा सकता हो – और वो पल हर बार आया।
और हाँ, जिन्हें चाय पसंद नहीं, उनके लिए एक पुरानी बात याद रखने लायक है – “जब कुछ करने को न हो, तो कुछ मत करो।”
साधारण-सी बात लगती है… पर कभी-कभी यही जीवन बचा लेती है।