एक बुद्धिमान भिक्षु, जिन्हें मैं कई वर्षों से जानता हूँ, एक बार अपने पुराने मित्र के साथ एक दूरस्थ जंगल में पदयात्रा कर रहे थे। गर्मी का दिन था, और देर दोपहर वे एक सुनसान किनारे पर पहुँचे – समुंदर की लहरें नीली और ठंडी, और मौसम तपता हुआ।
अब भिक्षुओं के लिए सिर्फ मौज-मस्ती के लिए तैरना अनुशासन के विरुद्ध है, लेकिन लंबी पैदल यात्रा के बाद उस ठंडे पानी का निमंत्रण टालना मुश्किल हो गया। शरीर तप रहा था, तो उन्होंने चुपचाप वस्त्र उतारे और पानी में उतर गए।
गृहस्थ जीवन में वे बहुत अच्छे तैराक थे। लेकिन अब, वर्षों से वे भिक्षु जीवन में लीन थे, और बहुत समय से पानी में उतरे ही नहीं थे। दो-चार मिनट पानी में लहरों से खेलते ही वे एक तेज़ समुद्री बहाव (रिप टाइड) में फँस गए, जो उन्हें खींचकर गहरे समुंदर की ओर ले जा रहा था।
बाद में उन्हें बताया गया कि यह किनारा बहावों के कारण बहुत खतरनाक माना जाता है।
शुरू में उन्होंने बहाव के विरुद्ध तैरने की कोशिश की – पर जल्दी ही समझ आ गया कि यह लड़ाई उनके बस की नहीं है। बहाव बहुत शक्तिशाली था।
तभी उनके भीतर का भिक्षु जागा – और उनका अभ्यास काम आया। उन्होंने अपने शरीर को ढीला छोड़ा, डर को छोड़ा, और बहाव के साथ बहने लगे।
वे लड़ना छोड़कर बहाव को समझने लगे – और बहाव ही उन्हें वापस किनारे तक ले आया।
कभी-कभी जीवन भी ऐसा ही होता है – हालात हमें खींच ले जाते हैं, और हम घबराकर लड़ने लगते हैं। लेकिन हमेशा जीत उसी की होती है, जो समय पर यह जान जाता है कि कब रुकना है, कब बहाव को अपनाना है, और कब खुद को थोड़ा हल्का छोड़ देना है।
कई बार, जीवन से बचने का रास्ता… बस बहने में होता है।