एक पुरानी बौद्ध कथा है, जो ठीक उसी तरह हमें जीवन-मरण के संकटों का सामना करने की बुद्धिमानी सिखाती है।
एक आदमी जंगल में भाग रहा था, उसके पीछे एक भूखा बाघ पड़ा था। बाघ, जैसा कि सब जानते हैं, आदमी से कहीं तेज़ दौड़ता है – और आदमी को खा भी जाता है। आदमी की जान पर बन आई।
दौड़ते-दौड़ते अचानक उसे रास्ते के किनारे एक सूखा कुआँ दिखा। जान बचाने की आखिरी कोशिश में उसने छलांग लगा दी। लेकिन जैसे ही उसने छलांग लगाई, उसे समझ आ गया कि गलती कर बैठा है। कुआँ एकदम सूखा था – और नीचे, कुएँ की तली में एक बड़ा काला साँप कुंडली मारे बैठा था।
जैसे ही गिरते हुए उसे होश आया, उसका हाथ कुएँ की दीवार से चिपके एक पेड़ की जड़ तक पहुँच गया। उसने उस जड़ को कसकर पकड़ लिया। वो जड़ ही उसे गिरने से रोक रही थी।
नीचे देखा, तो साँप फुफकारते हुए उसकी ओर उठ रहा था, लेकिन उसके पैर कुछ इंच ऊपर थे। ऊपर देखा, तो बाघ कुएँ में झाँक रहा था, पंजा मारने की कोशिश कर रहा था, पर उसका पंजा भी कुछ इंच दूर था।
अब हाल यह था – ऊपर बाघ, नीचे साँप, और बीच में लटक रहा था वो जड़ के सहारे।
तभी उसने देखा कि कुएँ की दीवार के पास एक छोटा-सा छेद है, और वहाँ से दो चूहे – एक सफेद और एक काला – उस जड़ को कुतर रहे हैं। दिन और रात, एक-एक पल, उसके सहारे को काट रहे थे।
बाघ की हरकतों से कुएँ के ऊपर की एक टहनी हिलने लगी। उस टहनी पर एक मधुमक्खी का छत्ता था। झट से उसमें से शहद की बूंदें टपकने लगीं।
आदमी ने जीभ बाहर निकाली… और एक बूँद पकड़ ली।
“उम्म! क्या स्वाद है…” वो मुस्कुरा उठा।
यहीं पर ये कथा पारंपरिक रूप से खत्म हो जाती है। और यही इसकी सच्चाई है।
जीवन कभी भी पूरी तरह बंद नहीं होता – यह हमेशा चलते रहने वाला धारावाहिक है। जैसे चूहे दिन-रात हमारी ज़िंदगी को कुतरते जा रहे हैं, जैसे संकट ऊपर-नीचे से घेरे होते हैं, वैसे ही कहीं न कहीं शहद की कोई मीठी बूँद भी टपक रही होती है।
बुद्धिमान वही है, जो उस बूँद को पहचान ले, जीभ बाहर निकाले… और ज़िंदगी का स्वाद ले। जब कुछ करने को न हो, तब कुछ मत करो – बस जो मीठा पल मिला है, उसे जी लो।
अब, हाँ… मैं अक्सर कथा को यहीं नहीं छोड़ता। मैं अपना ‘आधुनिक अंत’ भी सुनाता हूँ – ताकि बात पूरी तरह बैठ जाए।
तो हुआ यूँ…
जैसे ही आदमी शहद का मज़ा ले रहा था, चूहे जड़ को पतला करते जा रहे थे, साँप और पास आ रहा था, और बाघ का पंजा और नीचे झुकता जा रहा था।
फिर अचानक बाघ थोड़ा ज़्यादा नीचे झुक गया – और संतुलन खोकर कुएँ में गिर पड़ा! गिरते वक़्त वो आदमी को छू नहीं पाया, लेकिन पूरे वज़न से साँप को कुचल दिया… और खुद भी गिरकर मर गया।
अब देखिए… हो तो सकता है न? और अक्सर ज़िंदगी में कुछ न कुछ अजीब, अनपेक्षित हो ही जाता है।
इसलिए चाहे कितनी भी मुश्किल घड़ी हो – अगर शहद की एक बूँद भी दिख जाए, तो उसे चखना मत भूलो।
भविष्य हमेशा अनिश्चित है – और यही सबसे बड़ी राहत भी है।