नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

कोई समस्या है क्या?

सत्रहवीं सदी के फ्रेंच दार्शनिक और गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल ने कहा था, “मनुष्य की सारी परेशानियाँ इसलिए हैं क्योंकि वह शांति से बैठना नहीं जानता।” मैं इसमें एक पंक्ति और जोड़ता हूँ: “…और ये नहीं जानता कि कब शांति से बैठना चाहिए।”

सन् 1967 में इज़राइल, मिस्र, सीरिया और जॉर्डन के बीच ज़ोरदार युद्ध चल रहा था—जिसे इतिहास में ‘सिक्स डे वॉर’ के नाम से जाना गया। उसी समय एक पत्रकार ने ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री हैरोल्ड मैकमिलन से पूछा: “आपको क्या लगता है, मध्य-पूर्व की इस भयानक समस्या के बारे में?”

मैकमिलन ने बिना पल गंवाए जवाब दिया: “मध्य-पूर्व में कोई समस्या नहीं है।”

पत्रकार चौंक गया।

“क्या मतलब आपका कि ‘कोई समस्या नहीं’? आपको नहीं पता कि वहाँ ज़ोरदार जंग चल रही है? आसमान से बम बरस रहे हैं, टैंक एक-दूसरे को उड़ा रहे हैं, सैनिक गोलियों की बौछार में मर रहे हैं? लोग घायल हो रहे हैं, मर रहे हैं! फिर आप कैसे कह सकते हैं कि ‘कोई समस्या नहीं’?”

बूढ़े राजनेता ने शांत होकर समझाया: “देखिए, ‘समस्या’ वही चीज़ होती है जिसका समाधान हो। जहाँ समाधान ही नहीं है, वहाँ समस्या भी नहीं है।”

अब ज़रा सोचिए, हम अपने जीवन में कितना वक्त और ऊर्जा उन चीज़ों में खपा देते हैं, जिनका उस समय कोई हल ही नहीं होता। तो क्या वो वाकई “समस्याएँ” हैं?

कभी-कभी सबसे बुद्धिमानी की बात होती है — शांति से बैठ जाना, और कुछ न करना। क्योंकि हर उलझन, हर स्थिति को उसी वक़्त हल करना ज़रूरी नहीं होता। कई बार, “कोई समाधान नहीं” ही सबसे सच्चा उत्तर होता है।

तो अगली बार जब ज़िंदगी कहे: “समस्या है”, तो ज़रा रुककर पूछना — “क्या सच में कोई समाधान है?” अगर नहीं है, तो चिंता मत करो… क्योंकि फिर वो ‘समस्या’ नहीं है, बस एक हालात है।


📋 सूची | अगला अध्याय »