नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

करुणा के पंख

अगर दयालुता को एक सुंदर कबूतर माना जाए, तो बुद्धि उसके पंख होते हैं। बिना बुद्धि के करुणा कभी उड़ नहीं सकती।

एक बार एक बॉय स्काउट ने अपनी दिन की भलाई के तौर पर एक बूढ़ी अम्मा को एक व्यस्त सड़क पार करवा दी। समस्या ये थी कि अम्मा जी सड़क पार करना ही नहीं चाहती थीं, लेकिन वह मना नहीं कर सकीं क्योंकि उन्हें शर्म आ रही थी।

यह कहानी उस करुणा की तरह है जो हम दुनिया में अक्सर दिखाते हैं। हम सोच लेते हैं कि हमें पता है कि सामने वाले को क्या चाहिए।

एक नौजवान, जो जन्म से बहरा था, अपने मां-बाप के साथ डॉक्टर के पास गया, जैसे वह हमेशा चेकअप के लिए जाता था। डॉक्टर ने बड़े उत्साह से उसके माता-पिता को एक नई मेडिकल प्रक्रिया के बारे में बताया, जो उसने हाल ही में एक जर्नल में पढ़ी थी। उसने बताया कि 10 प्रतिशत जन्म से बहरे लोगों की सुनने की शक्ति एक आसान और सस्ती ऑपरेशन से पूरी तरह ठीक हो सकती है। उसने मां-बाप से पूछा, “क्या आप इसे आज़माना चाहेंगे?” मां-बाप ने झट से “हां” कह दिया।

वह नौजवान उन्हीं 10 प्रतिशत लोगों में से था—जिसकी सुनने की शक्ति पूरी तरह लौट आई। और वह बहुत गुस्सा और दुखी हुआ। उसने कहा कि उसने नहीं सुना कि डॉक्टर और उसके मां-बाप क्या बात कर रहे थे। किसी ने उससे नहीं पूछा कि क्या वह सुनना चाहता है या नहीं। अब उसे हर वक्त शोर सुनाई देता है, जो उसे परेशान करता है और जिसकी उसे समझ नहीं आती। वह कहता है, “मैं तो कभी सुनना चाहता ही नहीं था!”

उसके मां-बाप और डॉक्टर—और मैं खुद भी, जब तक मैंने यह कहानी नहीं पढ़ी थी—ये मान कर चल रहे थे कि हर कोई सुनना ही चाहेगा।

ऐसी करुणा, जो बिना पूछे और बिना समझे काम करती है, वह मूर्खता होती है। और ऐसी करुणा कई बार बहुत दुख देती है।


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