हमारे नेता अक्सर “खुलेपन” के लिए मशहूर होते हैं—खासतौर पर उस हिस्से में जो नाक और ठुड्डी के बीच होता है। ये कोई नई बात नहीं है। सदियों से यही चलता आ रहा है, जैसा कि बौद्ध जातक कथाओं में आई एक पुरानी कहावत से भी साबित होता है।
बहुत समय पहले की बात है, एक राजा अपने एक मंत्री से बहुत परेशान था। जब भी दरबार में कोई विषय चर्चा के लिए आता, वह मंत्री बीच में बोल पड़ता और फिर लगातार बोलता ही जाता। ऐसा लगता जैसे उसका भाषण कभी खत्म नहीं होगा। कोई भी—यहाँ तक कि राजा भी—बीच में कुछ कह नहीं पाता। और उसकी बातों में तो इतना रस भी नहीं होता जितना एक पिंग-पोंग बॉल के अंदर होता है।
एक और बेकार बैठक के बाद, राजा दरबार की राजनीति से तंग आकर अपने बाग में कुछ सुकून ढूंढ़ने चला गया। बाग के सार्वजनिक हिस्से में उसने देखा कि कुछ बच्चे एक अधेड़, विकलांग व्यक्ति के चारों ओर इकट्ठा होकर हँसी-खुशी में झूम रहे थे। बच्चे उस आदमी को कुछ सिक्के देते और एक छोटी सी पत्तेदार झाड़ी की ओर इशारा करके कहते, “एक मुर्गा बना दो!”
उस आदमी ने एक छोटी थैली से कंकड़ निकाले और मुँह से चलने वाली पे-शूटर से झाड़ी पर निशाना लगाना शुरू किया। उसने पत्तियों को इतनी फुर्ती और सटीकता से उड़ाया कि कुछ ही पलों में वह झाड़ी मुर्गे जैसी दिखने लगी। बच्चे फिर कुछ पैसे देते और इस बार एक बड़ी झाड़ी की तरफ इशारा करते, “अब एक हाथी बना दो!”
वही प्रक्रिया दोहराई गई और थोड़ी देर में एक झाड़ी हाथी की शक्ल ले चुकी थी। बच्चे ताली बजा रहे थे, और राजा को एक विचार आया।
राजा उस व्यक्ति के पास गया और कहा कि अगर वह एक छोटी सी समस्या का समाधान कर दे, तो उसे इतना अमीर बना देगा जितना उसने कभी सोचा भी नहीं होगा। राजा ने कुछ उसके कान में फुसफुसाया, आदमी मुस्कराया और हामी भर दी। राजा हफ्तों बाद पहली बार मुस्कराया।
अगली सुबह दरबार फिर लगा। किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया कि एक दीवार पर नया पर्दा लगा है। जैसे ही राजा ने कर बढ़ाने के प्रस्ताव की घोषणा की, वही मंत्री फिर से बोलना शुरू कर दिया। लेकिन जैसे ही उसने मुँह खोला, उसे कुछ छोटा और नरम सा गले के अंदर महसूस हुआ, जो सीधे पेट में चला गया। वो बोलता रहा।
कुछ ही पलों बाद फिर से कुछ उसके मुँह में गया, उसने फिर निगल लिया। ऐसा बार-बार हुआ, लेकिन मंत्री रुका नहीं। आधे घंटे तक वह लगातार बोलता रहा और साथ ही साथ अजीब-सी चीज़ें निगलता भी रहा। अब उसकी तबीयत बिगड़ने लगी थी, पर वह बोलना नहीं छोड़ रहा था। कुछ देर बाद उसका चेहरा हरा पड़ गया, पेट में मरोड़ उठने लगी, और आखिरकार वह बोलना छोड़कर मुँह पर हाथ रखकर टॉयलेट की ओर भागा।
राजा हँसी से लोटपोट होता हुआ उस पर्दे के पास गया और उसे हटाया। पर्दे के पीछे वही विकलांग आदमी बैठा था, अपनी पे-शूटर और एक बहुत बड़ी थैली के साथ—जो अब लगभग खाली थी। उस थैली में थे—मुर्गियों की बीट के छर्रे! और वो व्यक्ति उन्हें बड़ी सटीकता से मंत्री के मुँह के अंदर दाग रहा था।
वो मंत्री कई हफ्तों तक दरबार नहीं लौटा। और ये देखकर हैरानी हुई कि उसकी गैरहाज़िरी में कितना काम निपट गया! जब वह आखिरकार लौटा भी, तो बहुत कम बोलता था। और जब बोलता भी था, तो अपने मुँह के आगे दाहिना हाथ ज़रूर रखता था।
शायद आज के हमारे संसदों और विधानसभाओं में भी ऐसा कोई निशानेबाज़ हो, तो काम ज़्यादा जल्दी और शांति से हो सकता है!