नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

दुनिया की सबसे बड़ी चीज़

मेरे कॉलेज के दिनों के एक दोस्त की बेटी अभी-अभी प्राथमिक विद्यालय के पहले वर्ष में गई थी। उसकी अध्यापिका ने पाँच साल के बच्चों की बड़ी सी कक्षा से पूछा, “दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ क्या है?”

“मेरे पापा,” एक छोटी लड़की ने कहा।

“एक हाथी,” एक लड़के ने जवाब दिया जो हाल ही में चिड़ियाघर गया था।

“एक पहाड़,” किसी और ने कहा।

मेरे दोस्त की बेटी बोली, “मेरी आँख दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ है।”

कक्षा एकदम चुप हो गई क्योंकि वे सब उस बच्ची के जवाब को समझने की कोशिश कर रहे थे। “तुम्हारा मतलब क्या है?” उसकी टीचर ने भी उतने ही हैरान होकर पूछा।

“देखो,” उस छोटी दार्शनिक ने कहना शुरू किया, “मेरी आँख मेरे पापा को देख सकती है, और एक हाथी को भी। ये एक पहाड़ को भी देख सकती है और भी बहुत सी चीज़ों को। क्योंकि ये सब कुछ मेरी आँख में समा जाता है, इसलिए मेरी आँख ही दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ है!”

बुद्धि का मतलब पढ़ाई नहीं होता, बल्कि वह स्पष्ट रूप से देखना है जिसे सिखाया नहीं जा सकता।

मेरे दोस्त की छोटी बेटी के इस दृष्टिकोण को मैं थोड़ा और आगे बढ़ाना चाहूँगा। असल में, सबसे बड़ी चीज़ तुम्हारी आँख नहीं, तुम्हारा मन है।

तुम्हारा मन उन सब चीज़ों को देख सकता है जिन्हें तुम्हारी आँख देख सकती है, और उससे भी ज़्यादा—जो तुम्हारी कल्पना से आता है। यह ध्वनियों को भी जान सकता है, जिन्हें आँखें कभी नहीं देख सकतीं, और स्पर्श को भी, चाहे वह असली हो या सपनों से बना हो। तुम्हारा मन वह भी जान सकता है जो तुम्हारे पाँच इंद्रियों से परे है। क्योंकि जो कुछ भी जाना जा सकता है वह सब तुम्हारे मन में समा सकता है, इसलिए मन ही दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ है। मन सब कुछ समेटे हुए है।


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