सुअरों की बात चली ही है, तो ये किस्सा भी सुन लो —
एक बहुत ही अमीर और नामी डॉक्टर ने हाल ही में एक महंगी, तेज़ रफ़्तार स्पोर्ट्स कार खरीदी थी। अब इतनी मोटी रकम सिर्फ़ शहर की रेंगती ट्रैफिक में धैर्य की परीक्षा देने के लिए तो नहीं दी जाती, है ना? तो एक चमकते धूप वाले दिन, जनाब निकल पड़े शहर से बाहर — शांत देहात की खुली सड़कों की ओर।
जैसे ही कैमरा-रहित ज़ोन आया, डॉक्टर साहब ने एक्सेलरेटर पर जोर से पैर मारा। गाड़ी गड़गड़ाते इंजन के साथ सरपट दौड़ने लगी, हवा चीरती हुई खेतों के बीच वाली सड़क पर गरज उठी। डॉक्टर मुस्कराए — स्पीड का मज़ा सिर चढ़कर बोल रहा था।
लेकिन सड़क किनारे एक पुराना, धूप से तपाया किसान खेत के गेट से टेक लगाकर खड़ा था। स्पोर्ट्स कार की गड़गड़ाहट में अपनी आवाज़ ऊपर उठाते हुए किसान चिल्लाया, “सुअर!”
डॉक्टर ने साफ़-साफ़ सुना। उन्हें पता था कि वो कुछ ज़्यादा ही मनमर्जी कर रहे हैं — ना जगह का लिहाज़, ना गाँव की शांति की परवाह। लेकिन मन में बोले, “तो क्या? मज़े करने का हक़ तो मेरा भी है।”
तो उन्होंने गाड़ी की खिड़की से मुड़कर पलटकर ज़ोर से चिल्लाया, “किसको कह रहा है सुअर, बे?”
बस, इतने में ही उनका ध्यान कुछ पलों के लिए सड़क से हट गया — और अगली ही सेकंड उनकी नई नवेली गाड़ी एक असली सुअर से जा भिड़ी, जो बीच सड़क पर खड़ा था!
गाड़ी पूरी तरह चकनाचूर। खुद डॉक्टर साहब हफ्तों अस्पताल के बिस्तर पर पड़े रहे। गाड़ी गई, पैसे गए, और वो ‘हक़ से मज़े’ लेने का जोश भी… वो भी वहीं सड़क पर छितरा गया।
और वो किसान? शायद तब से और भी ज़ोर से चिल्लाता होगा — “सुअर!”