विहारवासी जीवन के अपने दूसरे वर्ष में, जब मैं थाईलैंड के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में था, मुझे स्क्रब टाइफस हो गया। बुखार इतना ज़बरदस्त था कि मुझे उबोन के क्षेत्रीय अस्पताल के भिक्षु वार्ड में भर्ती कर दिया गया। उन दिनों, 1970 के दशक के मध्य में, उबोन एक बहुत ही पिछड़ा इलाका था, एक अत्यंत गरीब देश का एक कोना। मैं कमज़ोर और रोगग्रस्त महसूस कर रहा था, मेरी बाँह में ड्रिप लगी थी, तभी मैंने देखा कि शाम 6:00 बजे पुरुष नर्स अपनी ड्यूटी से चला गया। आधे घंटे बाद भी उसकी जगह लेने वाला नर्स नहीं आया, तो मैंने अगली बिस्तर पर पड़े भिक्षु से पूछा कि क्या हमें किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति को सूचित करना चाहिए कि रात की ड्यूटी वाला नर्स नहीं आया है। मुझे तुरंत बताया गया कि भिक्षु वार्ड में कभी कोई रात की नर्स नहीं होती। अगर रात में तुम्हारी हालत बिगड़ जाए, तो वो बस दुर्भाग्यपूर्ण कर्म है। बीमार होना ही काफी बुरा था, अब मैं डर से काँप रहा था!
अगले चार हफ्तों तक, हर सुबह और दोपहर एक नर्स जो जल भैंसे की तरह मजबूत थी, मेरी पीठ में एंटीबायोटिक का इंजेक्शन लगाती थी। यह एक गरीब सार्वजनिक अस्पताल था, एक अविकसित क्षेत्र में, एक विकासशील देश में—इसलिए सुइयाँ कई बार रीसायकल की जाती थीं, जितना की बैंकॉक में भी कभी अनुमति नहीं होती। उस ताकतवर नर्स को सचमुच काफी ज़ोर से सुई घोंपनी पड़ती थी ताकि वो त्वचा में घुस सके। भिक्षुओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे सहनशील हों—लेकिन मेरी पीठ इतनी सहनशील नहीं थी। वह बहुत ही पीड़ादायक हो गई थी। उस समय मैं उस नर्स से घृणा करता था।
मैं दर्द में था, कमजोर था, और जीवन में कभी इतना दुःखी महसूस नहीं किया था। फिर, एक दोपहर, अजान चा भिक्षु वार्ड में मुझे देखने आए। मुझे देखने आए! मैं बहुत सम्मानित और अभिभूत महसूस कर रहा था। मेरा मनोबल ऊँचा उठ गया था। मैं अच्छा महसूस कर रहा था—तब तक जब तक अजान चा ने मुँह नहीं खोला। जो उन्होंने कहा, मुझे बाद में पता चला, वो उन्होंने कई बीमार भिक्षुओं से कहा था जिन्हें वे अस्पताल में देखने जाते थे।
उन्होंने मुझसे कहा, “या तो तुम ठीक हो जाओगे, या मर जाओगे।”
फिर वे चले गए।
मेरा उत्साह चकनाचूर हो गया। उस मुलाकात की खुशी तुरंत गायब हो गई। सबसे बुरी बात यह थी कि आप अजान चा को गलत नहीं ठहरा सकते थे। जो उन्होंने कहा वह पूरी तरह से सच था। मैं या तो ठीक हो जाऊँगा, या मर जाऊँगा। किसी भी स्थिति में, बीमारी की यह असुविधा स्थायी नहीं थी। हैरानी की बात यह थी कि यह बात बहुत सांत्वनादायक साबित हुई। जैसा हुआ, मैं मरा नहीं—ठीक हो गया।
कितने महान शिक्षक थे अजान चा।