नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

पूर्वकथन

“जब मैं बचपन में विहार जाया करती थी, तो मुझे अपने माता-पिता के साथ ही वहाँ जाना होता था। उस समय मुझे भिक्षुओं के साथ मेल-जोल रखने की अनुमति नहीं थी। मैं चुपचाप पीछे बैठती थी, बस इतनी दूरी पर कि उनकी बातें सुन सकूं।

आदरणीय भंते ने हमें सिखाया कि बुद्ध को कैसे श्रद्धा अर्पित करते है और उनके गुणों क सूत्रपठन के द्वारा किस प्रकार से स्तुति की जाती है। वे हमें सभी जीवित प्राणियों के प्रति प्रेम और दया की भावना रखने की सीख दी। और यह भी बताया कि हमें हमेशा खुले दिल से उदारवान व करुणावान बने रहना चाहिए।

भंते जी ने हमें यह भी समझाया कि भले ही कोई गृहस्थ उपासिका कितनी भी उदारता क्यों न हो जाए लेकिन उस पुण्य की तुलना उस व्यक्ति के पुण्य से नहीं की जा सकती जो सफेद वस्त्र धारण करके मे ची (बौद्ध संन्यासिनी) बन जाती है और ईमानदारी से सभी दुखों की समाप्ति की ओर ले जाने वाले मार्ग का अभ्यास करती है।

यह संदेश मेरे हृदय के बहुत करीब है और आज भी मेरे जीवन की दिशा तय करने में एक प्रेरणा बना हुआ है।”

— मे ची क्यु


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